
जाग्रत और सुषुप्ति दोनों का संधिकाल है- स्वप्न. दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित, कल्पित, भाविक, दोषज- ये इसके सात प्रकार हैं. जो देखा, जो सुना, जैसा अनुभव किया, जो चाहा तथा जैसी कल्पना की- ये ही क्रमशः पूर्वोक्त पांच प्रकार हैं. वात, पित्त एवं कफ- इन दोषों के विकृत होने से भी तदनुकूल स्वप्न होते हैं, जो दोषज की श्रेणी में आते हैं. इन छह प्रकार के स्वप्नों का कम प्रभाव होता है. सर्वाधिक प्रभाव भाविक अर्थात वैसे सपने, जिनके बारे में सोचा, देखा या सुना नहीं गया हो, का होता है.