नयी दिल्ली : केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के प्रमुख पद से आलोक वर्मा को हटाये जाने को लेकर देश भर में फैले विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काट्जू ने एक नया खुलासा किया है कि आखिरकार वर्मा को उनके पद से हटाने के लिए जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी ने वोट क्यों किया? अपने फेसबुक पोस्ट में जस्टिस काट्जू ने लिखा है कि वर्मा को हटाये जाने को लेकर जस्टिस सीकरी का पक्ष जाने बिना मीडिया में खबरें परोसी जा रही है. उन्होंने लिखा है कि शुक्रवार की सुबह जस्टिस सीकरी को फोन करके यह जानने की कोशिश की कि आखिर वर्मा मामले में हुआ क्या था.
जस्टिस सीकरी उस विशेष समिति के हिस्सा थे, जिन्होंने गुरुवार शाम को आलोक वर्मा को हटाने का फैसला किया है. तीन सदस्यीय समिति में शामिल जस्टिस सीकरी का मानना है कि सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा के खिलाफ कुछ गंभीर आरोप पर अपराध के प्रथम दृष्टया निष्कर्ष थे. हालांकि, वर्मा को उनके पद से हटाये जाने के बाद सीबीआई के निदेशक के रूप उनकी निरंतरता बाधित हो गयी.
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जस्टिस काट्जू के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस सीकरी एक समय में उनके सहयोगी थे, जब जस्टिस काट्जू दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे और जस्टिस सीकरी वहां पर न्यायाधीश थे. सीबीआई विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस काट्जू ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि उन्होंने शुक्रवार सुबह जस्टिस सीकरी को फोन करके पूछा कि आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख के पद से हटाने का फैसला करने वाली तीन सदस्यीय पैनल की बैठक के दौरान क्या हुआ. यह बैठक गुरुवार को आयोजित की गयी थी, जिसमें जस्टिस सीकरी के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल थे.
जस्टिस मार्कंडेय काटजू कहते हैं कि जस्टिस सीकरी ने उन्हें बैठक के बारे में जानकारी दी और उन्होंने जस्टिस काट्जू को इस जानकारी को सार्वजनिक करने की अनुमति भी दी. काटजू द्वारा डाली गयी फेसबुक पोस्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार निरोधी संस्था सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयोग) ने आलोक वर्मा के खिलाफ कुछ गंभीर आरोपों पर अपराध के प्रथम दृष्ट्या निष्कर्षों को दर्ज किया था.
जस्टिस काट्जू ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि सीवीसी ने वर्मा की सुनवाई के बाद ये निष्कर्ष निकाले. अपराध के इन गंभीर प्रथम दृष्ट्या निष्कर्षों को देखते हुए जस्टिस सीकरी की राय थी कि जब तक मामले की पूरी जांच नहीं हो जाती, आलोक वर्मा को सीबीआई के निदेशक के पद पर नहीं रहना चाहिए. जस्टिस काटजू की पोस्ट में वर्मा को हटाये जाने के बारे में एक प्रमुख बिंदु को भी रेखांकित किया गया है कि सीबीआई प्रमुख के पद से हटाने से पहले सलेक्शन पैनल ने आलोक वर्मा को सुनवाई का मौका क्यों नहीं दी?
उन्होंने लिखा है कि यह सभी जानते हैं कि अभियुक्त को सुनवाई के बिना भी निलंबित किया जा सकता है और यह निलंबन जांच पूरी होने तक रह सकता है. उन्होंने लिखा है कि वर्मा को निलंबित भी नहीं किया गया है, बहुत कम खारिज किया गया है. उन्हें केवल एक समान पद पर स्थानांतरित किया गया है.
फोन पर बातचीत के दौरान जस्टिस सीकरी ने उनसे कहा कि सीवीसी ने इस मामले में प्रथम दृष्ट्या वर्मा के खिलाफ कुछ गंभीर आरोपों पर अपराध का निष्कर्ष निकाला था. इसके साथ ही सीवीसी ने आलोक वर्मा को प्रथम दृष्ट्या मिले साक्ष्यों पर सुनवाई करने का मौका भी दिया था. जस्टिस सीकरी ने जस्टिस काट्जू को फोन पर बताया कि अपराध के इन गंभीर प्रथम दृष्टया निष्कर्षों के मद्देनजर और जिस तथ्यों पर वे आधारित थे, उसके दुरुपयोग के बाद जस्टिस सीकरी की राय थी कि जब तक इस मामले की पूरी तरह से जांच नहीं हो जाती और अपराध के दोषी या बेगुनाही के बारे में कोई अंतिम निर्णय आने तक वर्मा सीबीआई के निदेशक पद पर बने तो रहें, लेकिन उन्हें पद के समकक्ष किसी अन्य पद पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए.
जस्टिस सीकरी ने बताया कि वर्मा की सेवा समाप्त नहीं की गयी है जैसा कि कुछ लोगों का मानना है. उन्होंने बताया कि उन्हें निलंबित भी नहीं किया गया है, लेकिन केवल उनके वेतन और भत्तों को बरकरार रखते हुए उनका तबादला भर किया गया है. इसके साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि वर्मा को न तो निलंबित किया गया और न उन्हें बर्खास्त किया गया, बल्कि उन्हें केवल एक समान पद पर स्थानांतरित किया गया है.